राघव पुणे का एक ईमानदार और मेहनती पुलिस कांस्टेबल था। वह अपनी वर्दी को न केवल एक जिम्मेदारी, बल्कि एक गर्व के रूप में देखता था। उसकी साधारण जिंदगी उसकी पत्नी अनन्या के प्यार से भरपूर थी। अनन्या उसकी ताकत थी, उसकी प्रेरणा। दोनों का रिश्ता भरोसे और प्यार की नींव पर खड़ा था। लेकिन एक दिन, एक झूठा आरोप उनके इस सुखद संसार को हिला कर रख गया।
भ्रष्ट एंटी-करप्शन अधिकारी अरविंद मेहरा ने राघव पर रिश्वत लेने का झूठा मामला दर्ज करवा दिया। उसके खिलाफ नकली सबूत तैयार किए गए थे—चिह्नित नोट और एक गवाह, जिसे खरीद लिया गया था। राघव के लिए यह किसी बुरे सपने से कम नहीं था। वह खुद को निर्दोष साबित करना चाहता था, लेकिन सब तरफ से निराशा ही हाथ लग रही थी। उसके साथी भी उससे किनारा कर चुके थे।
एक रात, जब वह घर आया, तो उसकी आंखों में आंसू थे। वह चुपचाप कुर्सी पर बैठा और बोला, “अनन्या, मुझे लगता है कि मैंने सब कुछ खो दिया। लोग मुझे गुनहगार मान चुके हैं।”
अनन्या ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसकी आवाज में सख्ती थी। “राघव, मैं तुम्हें सबसे बेहतर जानती हूं। तुम निर्दोष हो, और यह दुनिया भी यह सच जानने वाली है। मैं तुम्हारे साथ हूं। जब तक मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम कभी हार नहीं सकते।”
उसके ये शब्द राघव के भीतर एक नई ऊर्जा भर गए। वह जान गया कि जब तक अनन्या उसके साथ है, वह लड़ सकता है।
राघव ने सेवानिवृत्त वकील प्रकाश से संपर्क किया, जो ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। अनन्या ने हर कदम पर उसका साथ दिया। वह हर रात उसे साहस देती, उसका मनोबल बढ़ाती। एक रात जब राघव ने थके हुए स्वर में कहा, “क्या हम यह लड़ाई जीत भी पाएंगे?” अनन्या ने उसकी आंखों में देखा और कहा, “तुम्हारी सच्चाई हमारी ताकत है। मैं तुम्हारे साथ हूं। हम जीतेंगे।”
जांच के दौरान, उन्होंने पाया कि गवाह, सुरेश, अरविंद के ऑफिस का कर्मचारी था। सख्त पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसे झूठ बोलने के लिए पैसे दिए गए थे। इसके अलावा, फोन रिकॉर्ड्स और दस्तावेजों ने साबित किया कि अरविंद ने राघव को जानबूझकर फंसाया था।
अदालत का दिन आ गया। राघव और अनन्या दोनों की आंखों में उम्मीद और डर का मिश्रण था। प्रकाश ने सभी सबूत प्रस्तुत किए। जज ने जब फैसला सुनाया, तो राघव की सांसें थम गईं।
“यह अदालत राघव को सभी आरोपों से बरी करती है और अरविंद मेहरा के खिलाफ जांच के आदेश देती है।”
राघव की आंखों में आंसू छलक आए। उसने अनन्या की ओर देखा, जो मुस्कुरा रही थी। दोनों की आंखें मिलते ही, शब्दों की जरूरत ही नहीं रही। उस पल में, उनका प्यार और विश्वास सारी दुनिया से बड़ा था।
कुछ ही दिनों में, अरविंद की सच्चाई सबके सामने आ गई। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। राघव को उसकी नौकरी वापस मिल गई।
पहले दिन वर्दी पहनकर जब वह थाने पहुंचा, तो उसके साथी खड़े होकर सलामी दे रहे थे। लेकिन राघव की नजरें बस अनन्या को ढूंढ़ रही थीं, जो थाने के बाहर खड़ी थी, गर्व से मुस्कुराती हुई।
उस रात, जब दोनों घर लौटे, राघव ने अनन्या का हाथ थामकर कहा, “अगर तुम नहीं होती, तो मैं कब का टूट चुका होता। तुमने मुझे फिर से जिंदा किया।”
अनन्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारी सच्चाई ही मेरी ताकत थी। और जब तक हम साथ हैं, कोई भी हमें हरा नहीं सकता।”
राघव ने अपने डेस्क पर एक पट्टिका लगाई:
“सच और प्यार का बैज: हार मानना कभी विकल्प नहीं।”
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